पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक है। पुरुष यानि आत्मा, प्रकृति यानि शक्ति। अपने कर्मो को पूर्ण करने के लिए आत्मा को शरीर चाहिए , शरीर यानि कर्मक्षेत्र, आत्मा यानि कर्ता, और कर्ता को कर्मक्षेत्र में कार्य करने के लिए शक्ति चाहिए। पुरुष अगर कर्ता है, तो प्रकृति क्रिया। क्रिया करने के लिए कर्ता की ज़रूरत होती है, और बिना क्रिया के कर्ता की कोई पहचान नहीं होती। किसी नए निर्माण के लिए कर्ता और क्रिया दोनों का होना ज़रूरी है। हमारा निर्माण भी कर्ता और क्रिया के संयोग से ही हुआ है, यानि हमारे अंदर कर्ता(पुरुष) और क्रिया (शक्ति) दोनों विद्यमान है। इस प्रकार हम मनुष्य के अंदर भी एक नई श्रृष्टि की वीज छुपी हुई है। पूरा ब्रह्माण्ड शक्ति का एक प्रारूप है। मनुष्य इस ब्रह्माण्ड का एक हिस्सा है। एक छोटा ब्रहमांड हम मनुष्य के अंदर भी है। इस प्रचंड ब्रह्माण्ड को समझने के लिए, हमारे अंदर विद्यमान ब्रह्माण्ड को समझना ज़रूरी है। जिस प्रकार प्रचंड ब्रह्माण्ड शक्ति का एक प्रारूप है, उसी प्रकार हमारे अंदर भी अथाह शक्ति का भंडार है। जो शक्ति हमारे अंदर विद्यमान है, वह सुषुप्त अवस्था में है। इस शक्ति को उपयोग में लाने के लिए हमे उस शक्ति को जागृत करना पड़ता है। आत्मा कोई स्त्रीलिंग या पुलिंग नहीं है। आत्मा अपने कर्मो के अनुसार स्त्रीलिंग या पुलिंग शरीर धारण करता है। स्त्री या पुरुष कोई भी, अपने छुपे हुए शक्ति को जगा सकता है, और अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है, और ख़ुद अपने जीवन का निर्माण कर सकता है।
नवदुर्गा के अवसर पर, देवी जागरण का अर्थ ही यही होता है, कि अपने अंदर छूपे शक्ति को जागृत करना। नवदुर्गा यानि नव निधि। नव प्रकार के विभिन्न शक्तियों का जागरण करना। माँ दूर्गा सिंह पे सवार होकर, असूरो को विनाश करती है। सिंह साहस और गरिमा का प्रतिक है। हमे यह इशारा करता है, कि हमे अपने अंदर छुपे अथाह शक्ति को जागृत करना चाहिए और साहस और गरिमा का सहारा लेकर, अपने अंदर छुपे असूरी प्रवृति को नष्ट करना चाहिए। सिंह लोभ का भी प्रतिक माना जाता है। माँ दुर्गा सिंह को अपने वश के रखती है, यानि लोभ को अपने वश में रखकर ही दैविक शक्ति का जागरण संभव है। माँ दूर्गा के अनेक भुजाये है, यह इस बात का प्रतिक है कि मनुष्य के अंदर अनंत कार्य करने की क्षमता है। मनुष्य के अंदर इतनी क्षमता विद्यमान है कि वह अपने शक्ति का जागरण कर दैविक पदवी प्राप्त कर सकता है।
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