संदीप को कही यात्रा पर जाना था, उसको सुबह की ट्रैन पकड़नी थी। उसको सुबह में देर से उठने की आदत थी। ट्रैन थी सुबह चार बजे की । वह अपने मित्र तारकेश्वर से बोला कि मुझे सूबह नींद से जागा देना, मुझे सुबह चार बजे की ट्रैन पकड़नी है। यह यात्रा बहुत ज़रूरी है मेरे लिए, मैं किसी भी कीमत पर यह ट्रैन मिस नहीं करना चाहता। क्या भरोसा अलार्म बजे और मैं उठ ना पाऊ, इसीलिए मैं आपको बोल रहा हू कि आप मुझे नींद से जागा देना । अगर उठ न पाऊ तो जबरन जगा देना, लेकिन जगा जरूर देना । मित्र ने बात मान ली।
सुबह हुई, अलार्म बजा, पर संदीप अलार्म बंद करके फिर से सो गया। तारकेश्वर उसको जगाने गया। संदीप कस के बिस्तर को पकड़ के सो रहा था । ऐसा लग रहा था कि बिस्तर छूटा कि प्राण निकले । तारकेश्वर उसका नाम पुकारकर जगाने की कोशिश की। मगर संदीप उसे सुनकर भी अनसुना कर दिया। इतना ही नहीं, वह अपने कान के ऊपर तकिया रखकर सो गया, ताकि यह आवाज़ फिर से सुनाई ना दे ।
तारकेशर उसका चादर खिंच के उठाने की कोशिश करने लगा, पर वह चादर छोड़ने को तैयार नहीं, बात सुनाने को तैयार नहीं। उसका हाथ पकड़कर हिलाया, और बोला - भाई, तुम्हारा ट्रैन है, समय से नहीं जागोगे तो ट्रैन छूट जायेगा, तुम अपने गंतव्य पर नहीं पहूँच पयोगे, तुम्हे अपने गंतव्य पर जाना है कि नहीं। उठो भाई, तुम लेट हो जाओगे ।
तुम्हीं बोले थें - नींद से जागा देना, सो तुंझे मैं जागा रहा हू। यह तुम्हारे भले के लिए है। उठने के बजाय तुम तो मुझपे नाराजगी दिखा रहे हो, और पूछ रहे हो की ट्रैन लेट तो नहीं है आज, या रद्द तो नहीं हो गयी, ताकि तुम कुछ घंटे और सो सको। ना ट्रैन लेट है, ना रद्द हुई है, तुम लेट हो। जब इंसान लेट होता है तो सोचता है कि सारी दुनिया मेरी तरह लेट हो जाये।
इसी तरह तुम भी गहरे नींद में हो, जाना कही और है, लेकिन तुम तो चादर तान के सो रहे हो। जगना तो चाहते हो, लेकिन जग नहीं पाते। प्रकृति के अलार्म बजते है, तुम सुन नहीं पाते, चारो तरफ तुम्हारे घटनाएं घट रही है, सब कुछ तुम्हारे आँखों के सामने हो रहा है, तुम उसे अनदेखा, अनसूना कर रहे हो, तुम तो भ्रम रूपी चादर से निकलना ही नहीं चाहते। तुम तो अपनी नींद की अधूरी सपने पूरा करने में लगे हो । होश में आओ, और समझो कि किसी के सपने सोने से नहीं जागने से पूर्ण होते है ।
लेकिन तुम्हारी एक अड़चन है - जो तुम्हे जगाने की कोशिश कर रहा है , तुम उसी को अपना दुश्मन समझ लेते हो, न जाने क्या-क्या अनाप-सनाप बक देते हो।
जो तुमको चादर उढा दे, और बोले कि सोए रहो, कुछ भी भागा नहीं जा रहा, आज नहीं तो कल चले जाना। लेकिन इस विलास रूपी बिस्तर को हाथ से ना जाने देना। जो ज़िंदगी है, बस यही है, इससे बढ़कर कही कुछ भी नहीं , यही सुख की सागर बहेगी, बस लेटे रहो। दुनिया इधर से उधर हिल जाये लेकिन तुम इस बिस्तर से न हिलना । जो ऐसा बोल दे, उसके प्यारा और न्यारा इस दुनिया में कोई नहीं है तुम्हारे लिये।
जो जगाने की कोशिश करे वह तो तुम्हे महा मुर्ख लगता है। तुम्हें यह ख्याल भी नहीं रहता कि वह तुम्हारे भले के लिए ही जगा रहा है। तुम नींद में हो, तुम्हे नहीं पता कि तुम कुछ पल नींद के लिए, जीवन का ट्रैन मिस कर रहे हो। जब तुम समय से जग नहीं पाते, और तुम्हारा ट्रैन मिस हो जाती है तो उसको कोसते हो जो तुम्हे जगाने का हर प्रयास किया । बिना अपनी पात्रता देखे दूसरे को कोशने में लग जाते हो।
ख्याल रहे, मनुष्य कि ज़िन्दगी बहुत ही दुर्लभ होती है। संसार की भोग विलासता और इसके चोंका चौन्ध कही तुम्हारी आँखे बंद करके गहरी नींद में सोला ना दे। इसके पहले देर हो जाये, जग जाओ, और अपने गंतव्य को प्राप्त करो ।
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