चंद्रमौलि नाम था उस युवक का। राजा के घर पैदा हुआ था । जाहिर है, उसको सारी सुख-सुविधाये बचपन से ही प्राप्त हुआ था। लेकिन उन चीज़ों से वह संतुष्ट नहीं था। उसके माँ-बाप जो भी उसको देते थे, वह उसके लिए कम लगता था। हमेशा कुछ न कुछ मागते ही रहता था। कभी उसके चेहरे पर ख़ुशी न दिखती थी। हमेशा उसके नाक चढे रहते थे। उसके इस रवैये से उसके परिवार वाले भी खुश नहीं थे। बडा होकर राजा बनना ही काफी न था उसके लिए।
उसके पिताजी का राजतन्त्र बहुत छोटा लगता था उसके लिये । वह तो राजाओ का राजा बनना चाहता था । सम्राट से नीचे कुछ भी पसन्द न था उसको। संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनना चाहता था। बड़ा बनने का सपने देखना और उसके लिए कोशिश करना बुरी बात नहीं, यह अच्छी बात है। लेकिन उस सपने के लिए,उन चीज़ों को भुला देना, जो ईश्वर ने आपको दिये है, यह अच्छी बात नहीं है। येनकेनप्रकारेण, वह सम्राट बनना चाहता था।
समय बीता, उसके पिताजी बूढे हो गए, और चंद्रमौलि को राजा बना दिया गया। राजा बनते ही दूसरे राज्यो पर चढ़ाई करना शूरू कर दिया। जीत भी मिलने लगी । बहुत से राज्यो को जीत लिया, और बहुत बड़े साम्राज्य का सम्राट बन गया। उसकी व्यस्तता बढ़ गयी। आदमी पद, प्रतिष्ठा, नाम, ख्याति और पावर से जितना बड़ा होता, उसको खुद के लिए उतना ही कम समय मिलता है। न उसको खुद के लिए समय था, न अपने परिवार के लिये। तिजोरी भरती रहे और वह राज्य जीतते रहे, बस उसका पूर्ण ध्यान उसी पर था।
उसके माँ-बाप बूढे हो चुके थे, उनके मुत्यु का वक्त नज़दीक आ चूका था । उनलोगों की यही ख्याईश थी कि उसका बेटा कुछ समय उनके साथ बिताये, और कम-से-कम अंतिम सास से समय वह उनके करीब रहे। पर ऐसा हो न सका। चंद्रमौलि दूसरे राज्यो के दौरे पे था, सुचना पहुच न सका, और इधर उसके पिताजी की अंतिम इच्छा उनके अंतिम सास के साथ दम तोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद उसके माँ भी चल बसी।
जब वह लौट के आया तो, उसको अपना जीवन खाली-खाली सा लगने लगा। हमे किसी चीज़ की अहमियत तब समझ में आती, जब हम उसको खो देते है । जब उदासी उसको बहुत सताती तो, जाकर अपनी तिजोरी खोलता,और उसको भरा देखकर, थोड़ी क्षणिक ख़ुशी मिल जाती। जब आदमी अंदर से खाली होता है, तो भरी हुई तिजोरियो में अपना ख़ुशी ढूढ़ता है। फिर वह तिजोरी पर तिजोरी भरने में लग जाता है। और बाद में वही तिजोरी मनुष्य के दुःख और भय का कारण बन जाता है। और भय की स्थिति में मनुष्य क्या खाक खुश रह सकता है?
सम्राट के चमकते मुकुट के पीछे एक मुरझाया हुआ इंसान से ज्यादा कुछ न था। अपनी इस उदासी को दूर करने के लिए किसी एक पहाड़ी इलाके में घूमने की योजना बनाई। अंदर बादियो में कुछ क्षण एकान्त में व्यतीत करना चाहता था। अंदर पंहुचा तो उसे किसी के गाना गाने की आवाज़ सुनाई दिया। उस तरफ बढ़ा । देखा कि एक चरवाहा अपने भेडियो को चरा रहा है और पुरे आनंद में गाना गा रहा है। सम्राट को बहुत अचम्भा हुआ, यह न तो सम्राट है, न इसके पास कोई साम्राज्य है, कपडे भी पुराने, गन्दे और फटे हुए, फिर भी इतना आनंद। ऐसा क्या मिल गया है इसको?
सम्राट से रहा न गया, और पूछा उस चरवाहे से - भाई, तुमको ऐसा कौन सा साम्राज्य मिल गया है, जो की तुम इतने आनंदित हो? चरवाहा बोला - न मुझे कोई साम्राज्य मिला है, नहीं मुझे कोई साम्राज्य प्राप्त करने की इच्छा है। मनुष्य के बनाये हुए साम्राज्य तो बहुत ही छोटा होता है, झूठ के बुनियाद पे खड़ा रहता है।
रहा सवाल मेरे खुश रहने का तो - खुश न रहू तो दुःखी क्यों रहू, दुःख का कोई कारण भी तो नहीं है। ख़ुशी इंसान के अंदर पहले से ही विद्यमान है। दुःख तो इंसान की मस्तिष्क की इज़ाद की हुई चीज़ है। और बहुत से दुखो का कोई कारण भी नहीं होता। जब वह खोखले दुःख के कारण मिट जाते है, तो ख़ुशी की लहर अपने-आप बहने लगती है। यह सुनकर सम्राट और चौका और बोला - भाई, इसमें कोई राज़ मालूम होता है, जरा बिस्तार में बताओ।
चरवाहा बोला - यह आकाश, वायु, यह सूरज और उसकी रौशनी, चाँद की खूबसूरती, तारो का टिमटिमाना, फूलो का खिलना, पंछियो का चहचहाना, पेड़- पौधों का नाचना, यह सब जितना मेरा है, उतना तुम्हारा है। यह सबको दे रहे है, बिना कुछ मांगे हुए। दिए जा रहे, दिए जा रहे है। सदियो से बस देते ही जा रहे है। इतने बड़े साम्राज्य के आगे कोई क्या सम्राट और उसका साम्राज्य ? फर्क सिर्फ इतना है कि - मैं प्रकृति के ज़्यादा करीब हू, और तुम उतने दूर । तुम अपनी सारी ख़ुशी कृतिम चीज़ों में ढूंढ रहे जहा है नहीं, और जहा है, उसको तुम दरकिनार किये हो। यह सबसे बड़ा मनुष्य के दुःख का कारण है। जो चीज़ जहा है ही नहीं, वह मिलेगी कैसे?
अगर सूर्य रौशनी देना बंद कर दे, तो पेड़-पौधे नष्ट हो जायें, और पेड़-पौधे न हो तो, हमे ऑक्सीजन नहीं मिलेगा। बिना ऑक्सीजन के जीवन संभव नहीं, जब जीवन ही नहीं तो क्या ताज और क्या फटे कपडे? कोई सम्राट इतना शक्तिशाली नहीं जो अपने साम्राज्य को एक मिनट के लिए भी जिन्दा रख सके, यदि पेड़-पौधों ने ऑक्सीजन देना बंद कर दिया तो।
प्रकृति की इतनी निःस्वार्थ भाव देखकर, उसके प्रसंशा में, संगीत तो अपने-अपने निकल आते है। प्रकृति बिना मांगे ही सब कुछ दे रही है, बस देखने वाली आँखे चाहिये। सम्राट नतमष्तक हो गया उस चरवाहे के सामने, और बोला - भाई, मेरी तिजोरी भरी रहने के बावजूद भी, मैं अंदर से हमेशा खाली और खोखला रहा, और तेरे पास तिजोरी न होने के बावजूद भी, तू अंदर से भरा रहा। मैं सम्राट होकर भी दरिद्र रहा, तेरे पास कुछ न होने के बावजूद भी तुम एक सम्राट की ज़िन्दगी जी रहे हो। धन-सम्पदा, पावर और पद-प्रतिष्ठा आदि से कोई सम्राट नहीं होता, यह तो उलझन से ज्यादा कुछ भी नहीं। असली मालकियत तो तब आती, जब इंसान खुद से बोले की अब बहुत हो गया, अब कुछ पाने को शेष न रहा, और जो मिला है, उसके लिए ईश्वर का शुक्रिया करे।
उसके पिताजी का राजतन्त्र बहुत छोटा लगता था उसके लिये । वह तो राजाओ का राजा बनना चाहता था । सम्राट से नीचे कुछ भी पसन्द न था उसको। संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनना चाहता था। बड़ा बनने का सपने देखना और उसके लिए कोशिश करना बुरी बात नहीं, यह अच्छी बात है। लेकिन उस सपने के लिए,उन चीज़ों को भुला देना, जो ईश्वर ने आपको दिये है, यह अच्छी बात नहीं है। येनकेनप्रकारेण, वह सम्राट बनना चाहता था।
समय बीता, उसके पिताजी बूढे हो गए, और चंद्रमौलि को राजा बना दिया गया। राजा बनते ही दूसरे राज्यो पर चढ़ाई करना शूरू कर दिया। जीत भी मिलने लगी । बहुत से राज्यो को जीत लिया, और बहुत बड़े साम्राज्य का सम्राट बन गया। उसकी व्यस्तता बढ़ गयी। आदमी पद, प्रतिष्ठा, नाम, ख्याति और पावर से जितना बड़ा होता, उसको खुद के लिए उतना ही कम समय मिलता है। न उसको खुद के लिए समय था, न अपने परिवार के लिये। तिजोरी भरती रहे और वह राज्य जीतते रहे, बस उसका पूर्ण ध्यान उसी पर था।
उसके माँ-बाप बूढे हो चुके थे, उनके मुत्यु का वक्त नज़दीक आ चूका था । उनलोगों की यही ख्याईश थी कि उसका बेटा कुछ समय उनके साथ बिताये, और कम-से-कम अंतिम सास से समय वह उनके करीब रहे। पर ऐसा हो न सका। चंद्रमौलि दूसरे राज्यो के दौरे पे था, सुचना पहुच न सका, और इधर उसके पिताजी की अंतिम इच्छा उनके अंतिम सास के साथ दम तोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद उसके माँ भी चल बसी।
जब वह लौट के आया तो, उसको अपना जीवन खाली-खाली सा लगने लगा। हमे किसी चीज़ की अहमियत तब समझ में आती, जब हम उसको खो देते है । जब उदासी उसको बहुत सताती तो, जाकर अपनी तिजोरी खोलता,और उसको भरा देखकर, थोड़ी क्षणिक ख़ुशी मिल जाती। जब आदमी अंदर से खाली होता है, तो भरी हुई तिजोरियो में अपना ख़ुशी ढूढ़ता है। फिर वह तिजोरी पर तिजोरी भरने में लग जाता है। और बाद में वही तिजोरी मनुष्य के दुःख और भय का कारण बन जाता है। और भय की स्थिति में मनुष्य क्या खाक खुश रह सकता है?
सम्राट के चमकते मुकुट के पीछे एक मुरझाया हुआ इंसान से ज्यादा कुछ न था। अपनी इस उदासी को दूर करने के लिए किसी एक पहाड़ी इलाके में घूमने की योजना बनाई। अंदर बादियो में कुछ क्षण एकान्त में व्यतीत करना चाहता था। अंदर पंहुचा तो उसे किसी के गाना गाने की आवाज़ सुनाई दिया। उस तरफ बढ़ा । देखा कि एक चरवाहा अपने भेडियो को चरा रहा है और पुरे आनंद में गाना गा रहा है। सम्राट को बहुत अचम्भा हुआ, यह न तो सम्राट है, न इसके पास कोई साम्राज्य है, कपडे भी पुराने, गन्दे और फटे हुए, फिर भी इतना आनंद। ऐसा क्या मिल गया है इसको?
सम्राट से रहा न गया, और पूछा उस चरवाहे से - भाई, तुमको ऐसा कौन सा साम्राज्य मिल गया है, जो की तुम इतने आनंदित हो? चरवाहा बोला - न मुझे कोई साम्राज्य मिला है, नहीं मुझे कोई साम्राज्य प्राप्त करने की इच्छा है। मनुष्य के बनाये हुए साम्राज्य तो बहुत ही छोटा होता है, झूठ के बुनियाद पे खड़ा रहता है।
रहा सवाल मेरे खुश रहने का तो - खुश न रहू तो दुःखी क्यों रहू, दुःख का कोई कारण भी तो नहीं है। ख़ुशी इंसान के अंदर पहले से ही विद्यमान है। दुःख तो इंसान की मस्तिष्क की इज़ाद की हुई चीज़ है। और बहुत से दुखो का कोई कारण भी नहीं होता। जब वह खोखले दुःख के कारण मिट जाते है, तो ख़ुशी की लहर अपने-आप बहने लगती है। यह सुनकर सम्राट और चौका और बोला - भाई, इसमें कोई राज़ मालूम होता है, जरा बिस्तार में बताओ।
चरवाहा बोला - यह आकाश, वायु, यह सूरज और उसकी रौशनी, चाँद की खूबसूरती, तारो का टिमटिमाना, फूलो का खिलना, पंछियो का चहचहाना, पेड़- पौधों का नाचना, यह सब जितना मेरा है, उतना तुम्हारा है। यह सबको दे रहे है, बिना कुछ मांगे हुए। दिए जा रहे, दिए जा रहे है। सदियो से बस देते ही जा रहे है। इतने बड़े साम्राज्य के आगे कोई क्या सम्राट और उसका साम्राज्य ? फर्क सिर्फ इतना है कि - मैं प्रकृति के ज़्यादा करीब हू, और तुम उतने दूर । तुम अपनी सारी ख़ुशी कृतिम चीज़ों में ढूंढ रहे जहा है नहीं, और जहा है, उसको तुम दरकिनार किये हो। यह सबसे बड़ा मनुष्य के दुःख का कारण है। जो चीज़ जहा है ही नहीं, वह मिलेगी कैसे?
अगर सूर्य रौशनी देना बंद कर दे, तो पेड़-पौधे नष्ट हो जायें, और पेड़-पौधे न हो तो, हमे ऑक्सीजन नहीं मिलेगा। बिना ऑक्सीजन के जीवन संभव नहीं, जब जीवन ही नहीं तो क्या ताज और क्या फटे कपडे? कोई सम्राट इतना शक्तिशाली नहीं जो अपने साम्राज्य को एक मिनट के लिए भी जिन्दा रख सके, यदि पेड़-पौधों ने ऑक्सीजन देना बंद कर दिया तो।
प्रकृति की इतनी निःस्वार्थ भाव देखकर, उसके प्रसंशा में, संगीत तो अपने-अपने निकल आते है। प्रकृति बिना मांगे ही सब कुछ दे रही है, बस देखने वाली आँखे चाहिये। सम्राट नतमष्तक हो गया उस चरवाहे के सामने, और बोला - भाई, मेरी तिजोरी भरी रहने के बावजूद भी, मैं अंदर से हमेशा खाली और खोखला रहा, और तेरे पास तिजोरी न होने के बावजूद भी, तू अंदर से भरा रहा। मैं सम्राट होकर भी दरिद्र रहा, तेरे पास कुछ न होने के बावजूद भी तुम एक सम्राट की ज़िन्दगी जी रहे हो। धन-सम्पदा, पावर और पद-प्रतिष्ठा आदि से कोई सम्राट नहीं होता, यह तो उलझन से ज्यादा कुछ भी नहीं। असली मालकियत तो तब आती, जब इंसान खुद से बोले की अब बहुत हो गया, अब कुछ पाने को शेष न रहा, और जो मिला है, उसके लिए ईश्वर का शुक्रिया करे।
Aaj bahut dino baad ek acchi gyan wardhak story padne ko mila Manoj Bhai. - Amit Srivastava 9810994763
ReplyDeleteThanks Amit .. Nice to hear from you.
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