एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान शिव, जो कि एक महान योगी है, संसार से विरक्त है, कही दूर चले जाते है. माता पर्वती अपने शरीर के हल्दी उपटन से एक छोटे बच्चे का निर्माण करती है.जिसका नाम होता है विनायक. विनायक का मतलब होता है, "वी+ नायक", अर्थात विना नायक का, यानि बिना पुरुष के सहयोग से निर्माण किया गया बच्चा. माता पर्वती स्नान करने जाती है, और विनायक को यह निर्देश देती है क़ि, किसी को भी अंदर प्रवेश नहीं करने देना. संयोगवश, उसी समय भगवान शिव पर्वती से मिलने आ जाते है. इस समय तक, दोनो भगवान शिव ओर विनायक एक दूसरे से अंजान है. भगवान शिव अन्दर जाने का प्रयास करते है और विनायक उनका मार्ग अवरूध करते है. दोनो ही अचानक आक्रामक और हिंसक हो जाते है. हालांकि, भगवान शिव विनायक से बताते है कि, वह पर्वती के पति है, फिर भी विनायक उन्हे अंदर प्रवेश से वर्जित करते है. क्रोध मे, भगवान शिव अपने त्रिशूल से विनायक का सर उनके धड से अलग कर देते है. इस मजबूत प्रहार से विनायक का सर कहीं विलुप्त हो जाता है, और धड पृथ्वी पर रह जाता है.
इसी वक्त पर्वती आती है, और यह दर्दनाक दृश्य देखकर बहुत दुखी हो जाती है. रोते-बिलखते, शिव से विनायक को जीवित करने की मांग करती है. सभी देवी-देवता इस घटना से चिंतित हो जाते है. पर्वती जिद्दी हो जाती है, और कहती है कि, किसी भी कीमत पर विनायक की जीवन वापस चाहिये. वह धमकी देती है कि, यदि विनायक को जीवित नहीं किया गया तो वह काली का रूप लेकर सारे अस्तित्व को समाप्त कर देंगी. काली, दुर्गा, पर्वती व अन्नपूर्णा यह सब शक्ति के ही विभिन्न रूप है. यदि शक्ति को सम्मान न मिले तो वह काली का रूप धारण कर लेती है, और अस्तित्व के लिये खतरा बन जाती है. जब सम्मान मिलता है, तो वही शक्ति अन्नपूर्णा देवी है, जो सारे अस्तित्व को भोजन प्रदान करती है. भगवान शिव पर्वती को सांत्वना और आश्वाशन देते है. भगवान शिव के समक्ष एक ही विकल्प शेष रह जाता है,विनायक को पुनर्जीवित करना. वह अपने गण को आदेश देते है कि, जंगल से उस जानवर का सर लेकर आओ, जिसकी माता अपने बच्चे को पीठ के पीछे सुला रही है, या जो जानवर उत्तर दिशा मे सर करके सो रहा है. एक हाथी ऐसी ही स्थिति मे मिल जाता है. उस हाथी का सर विनायक के धड से जोड़ दिया जाता है, और विनायक गजानन के रूप मे जीवित हो जाते है. गजानन का मतलब , जिसका आनन गज(हाथी) का हो. भगवान शिव उन्हे अपने पुत्र के रूप मे स्वीकार करते है, और अपने गण के स्वामी गणेश बना देते है.
यह कथा तार्किक और विरोधाभाष हो सकता है कि, भगवान शिव जो की "अंतर्यामी" है, दूसरो के मन की बात जान लेने वाले है, फिर यह कैसे संभव है कि वह पर्वती और विनायक वाली घटना से अन्जान रहे ? भगवान शिव ने विनायक के केवल सर काटे, और सर ऐसा गायब हुआ कि पुनः उसको ढूँढा न जा सका. इस संघर्ष मे विनायक का केवल सर कटा, उनके बाकी शरीर पर खरोच तक नहीं आई. भगवान शिव "त्रिनेत्रधारी" है, वह कहीं भी त्रिभुवन मे देख सकते है. फिर यह कैसे संभव है कि, विनायक का सर ढूँढा न जा सका? हालांकि, भगवान शिव ने बताया कि, वह पर्वती के पति है, इसके वावजूद भी, विनायक ने भगवान शिव का तिरस्कार किया, और केवल अपने माता के ही निर्देशो पर अडिग रहे. इसका मतलब, यह पौराणिक कथा, इस माध्यम से कुछ और संदेश देना चाहती है.
पहली बात, भगवान शिव योगी है और संसार से विरक्त है. वह कदापि सांसारिक चीजो मे युक्त नहीं होना चाहते थे. पर्वती, भगवान शिव के अनुपस्थिति मे, अपने शरीर से विनायक का निर्माण करती है, जिसमे न भगवान शिव का सहयोग है और नाही सहमति. इसलिये, भगवान शिव ने विनायक को अपने पुत्र के रूप मे स्वीकार नहीं किये. विनायक ने भगवान शिव, जो की आत्मा के प्रारूप है, को तिरस्कार किये. यह व्यवहार, विनायक की आध्यात्मिक दुर्बलता को दर्शाता है. चूंकि, सारे विचार मस्तिष्क से ही उदगम होते है. इसलिये, भगवान शिव ने विनायक का केवल सर काटा.
भगवान शिव आध्यात्मिकता और विरक्ति के प्रतीक है, जबकि शक्ति आर्थिक और आसक्ति के प्रतीक है. भगवान शिव ने अपने गण से उस जानवर का सर लाने को कहा, जिसका सर उत्तर दिशा मे हो या जिसकी मा अपने बच्चे को पीठ पीछे सुला रही हो. उत्तर दिशा भगवान शिव की दिशा है, और पीठ पीछे विरक्ति का प्रतीक है. इस प्रकार भगवान शिव ने सर(आध्यात्मिक और बुद्धि) और पर्वती ने शरीर(आर्थिक और आसक्ती) का सहयोग कर गणेश का प्रदुभाव किया. हाथी का बड़ा सर, बड़ी सोच को दर्शाता है. गणेश, शिव और पर्वती के पुत्र के रूप् मे विख्यात हो गये. गणेश के पास आध्यात्मिक और आर्थिक दोनो गुण है.
गणेश प्रथम पूजनीय देवता, प्रथमेश है. किसी भी नये कार्य को प्रारंभ करने के लिये मुख्यत: जो साधनो की आवश्यकता होती है, वह है बुद्धि और अर्थ(पैसा). इस दृष्टि से, गणेश से बेहतर देवता और कौन हो सकता है.
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