Saturday 17 November 2012

अहंकार का घड़ा और मंजिल


एक ऋषि अपने शिष्यों को एक-एक घड़ा देकर बोले- इस घड़ा को लेकर एक पहाड़ की शिखर पर पहुचना है, जो शिखर पर पहुचेंगा, उसको उसके दक्षता के अनुरूप पुरस्कृत किया जायेंगा। सभी शिष्य अपनी-अपनी घड़ा लेकर शिखर की तरफ मुखातिर हो गए। पहाड़ की चढाई थी, और शिखर का रास्ता दूभर था। सभी शिष्य यह ध्यान रखने में लगे कि, कही घड़ा टूट न जाए। ज्यो-ज्यो घड़े के बारे में विचार करते, उतना ही चलना और घड़ा संभालना मुश्किल होता। एक ऐसा वक़्त आया जब  सारे शिष्य घड़े पर केन्द्रित हो गए और वास्तविक कार्य और मंजिल फीका पड़ने लगा। एक दुसरे से आगे निकलना है, अब यह होड़ लग गयी। शिखर की दिशा चाहे जो भी हो, सामने वाला मुझसे आगे नहीं निकलना चाहिए बस! चाहे वह किसी भी दशा और दिशा में जा रहा हो। जो भी दुसरे से आगे निकलता वह अहंकार से भर जाता। फिर दूसरा उसके पीछे, उसको परास्त करने में अपनी पूरी शक्ति लगाता। इस तरह सारे शिष्यों की मनोदशा एक-दूसरे को पछाड़ने की हो गयी, और वास्तविक मंजिल भूल गए। उनका अहंकार का घड़ा भारी होता गया, और वे अपने मंजिल से दूर होते गए।

इसी दौरान एक शिष्य को ठोकर लगी, वह गिर गया और उसका घड़ा टूट गया, कुछ समय तक तो वह इस टूटे घड़े को इकट्ठा करने में लगा रहा, तभी उसको याद आया कि उसको शिखर पर पहुचना है, और मार्ग से भी विमुख हो चूका है। फिर वह सही दिशा और मार्ग पकड़कर शिखर पर पहूच गया। गुरु इस शिष्य को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। शेष कोई भी शिष्य शिखर पर दिए गए समयावधि में नहीं पहुच सका। जो शिष्य शिखर पर पंहुचा, उसको गुरु ने अपना उतराधिकार बना दिए।

इसी प्रकार परमात्मा ने हमें एक निश्चित समयावधि "जीवन" के रूप में प्रदान किये है, और एक मंजिल दिए है, अपने-आपको जानने का, आत्म-ज्ञान का। हमारे शरीर के भीतर दो चीजे निवास करती है, एक अहम् और दूसरा स्वयं(आत्मा)। लेकिन हम अहम् को इतने कसके जकड़े है कि कही यह टूट न जाए। स्वयं का रास्ता अहम् से होकर जाता है। जब तब अहम् पार नहीं होता, तब-तक स्वयं से साक्षात्कार नहीं हो सकता। मगर हमारी  सारी ताक़त और समय इसी व्यवस्था में लगे है कि कही हमारा अहम् न टूट जाये। अहम् भी कोई मामूली नहीं है, एक पूरा करो दूसरी की फरमाईश सामने प्रस्तूत कर देता है। इसका यह सिलसिला चलते रहता है और हम अपनी वास्तविक मंजिल भूल जाते है। जब जीवन समाप्ति की घोषणा होती है, तब हमे ज्ञात होता है कि हम अपनी मंजिल से भटक गए थे। वह इंसान भाग्यशाली होता है, जिसको सही वक़्त पे ठोकर लगती है, उसका अहंकार का घड़ा टूटता है, और आत्म-ज्ञान का बोध होता है।



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