तुम समझ रहो कि तुम चल रहे हो, आगे बढ़ रहे हो, लोग तुमसे पीछे छूटते जा रहे है । मंजिल को तुम जल्द ही पा लोगे, नहीं, यह तुम्हारा भ्रम है। तुम्हारी अंततः मंजिल चलने से नहीं, बल्कि अपने-आप में ठहर जाने से प्राप्त होगी।
तुम सुख की प्राप्ति के लिए, न जाने कहा-कहा जाते हो, क्या-क्या करते हो। तुम्हे कुछ क्षण के लिए भ्रम होता है कि तुम सुख की प्राप्ति कर रहे हो, लेकिन तुम्हे यह आभास नहीं होता कि इस क्षणिक सुख की पटल पर तुम शाश्वत दुःख की विजारोपण कर रहे हो ।
ईश्वर की प्राप्ति के लिए तुम तीर्थ जाते हो, धन खर्च करते हो, समय खर्च करते हो, लेकिन ईश्वर मिलने की बात तो दूर, तुम्हे तो वहां ईश्वर का एहसास भी नहीं होता। गलत विधि अपना रहे हो। अन्धो के भीड़ में शामिल हो गए हो। इससे तुम्हे निराशा और बेचैनी के सिवाय कुछ भी हासिल होने वाला नहीं ।
ईश्वर का वास तो हमारे स्वयं के भीतर है । सुख और ख़ुशी का भंडार तो हमारे अंदर ही विध्यमान है। इसको ढूढो, और यही ढूढो। तुम्हे एक अदभूत सुख और शांति का आभास होने लगेगा। तूम अनावश्यक भीड़ से अलग मालूम पड़ोगे। तुम्हे, तुम्हारी मंजिल मिल जायेगी, तुम्हारा तुमसे स्वयं का साक्षात्कार हो जाएगा। जिस दिन तुम अपने अपने-आप को ढ़ूढ लोगे, उस दिन तुम दुनिया के सबसे आमिर व्यक्ति महसूस करोगे। फिर, तुम्हे इस संसार में कुछ भी पाने को शेष नहीं रह जाएगा । तुम दरिद्र नहीं, दाता बन जाओगे। यही तो है अध्यात्म । इसी की प्राप्ति के लिए ही तो अनेक धर्मो के शास्त्रों ने अनेक विधियां रचित की है । यही तो सर्वोच्च मकसद बताई गई है, और कोई प्रयोजन नहीं है इसके सिवाय ।
दुनिया के तमाम मनुष्य क्या सोच रहे है तुम्हारे बारे में, यह मायने नहीं रखता, तुम्हारी सोच तुम्हारे लिए मायने रखती है। तुम्हरी सोच क्या है, यह बात अपने-आप में गहरे उतर जाने से पता चलेगा ।