शादी से पहले वर और वधू के हर पहलू का वाकायदा निरकक्षण किया जाता है कि वे करते क्या है , उनकी शिक्षा क्या है , उनकी आमदनी क्या है, उनका खानदान क्या है.... वैगरह - वैगरह... उसके बाद कुंडली मिलायी जाती है। सब क़ुछ समाज और परिवार के अनुसार मैच होने के बाद दो लोग शादी के प्रणव सूत्र में बंधते नहीं, परन्तु, अक्सर समाज और परिवार के रीति-रिवाज़ के बंधन में बांध दिये जाते है।
लेकिन प्यार में ऐसा नहीं होता - प्यार महज हो जाता है। प्यार जातीय पसंद होता है।
शादी एक मुक्कमल चीज़ होती है और प्यार अधूरा होता है। मुक्कमल और अधूरा एक दूसरे का विरोधाभास होता है। एक -दूसरे के साथ नहीं रह सकते। पूर्णता आते ही अधूरापन समाप्त हो जाता है। शादी के बाद पति और पत्नी एक दूसरे में परफेक्शन ढूढ़ने में लग जाते है । एक- दूसरे को सुधारने में लग जाते है। एक-दूसरे के कमियों को उजागर करने में लग जाते है। शादी हो गयी है मतलब की एक दूसरे में कोई कमिया नहीं होनी चाहिए। यही सुधरने और सुधारने में पूरी जिंदगी समाप्त हो जाती है।
प्यार पफेक्शन का मांग नहीं करता, बल्कि जो भी है उसको स्वीकार करता है। वह इसकी मांग कर ही नहीं सकता - क्योकि प्यार अपने-आप में आधा और अधूरा होता है। गौर से देखे -
प्यार में प आधा है,
इश्क में श आधा है,
मुहब्बत में ब आधा है,
प्रेम में र आधा है और
प्रेम के प्रतिक माने जाने वाले श्रीकृष्ण में ष अधूरा है-
इसीलिए तो मंदिरो में श्रीकृष्ण के साथ सत्यभामा नहीं, राधा है।
जिसको पता है कि मै खूद में अधूरा हूँ, तो वह दुसरो में परफेक्शन नहीं ढूंढ़ता, बल्कि उसमे विलय होकर अपने अधूरेपन को दूर करने का प्रयास करता है।
प्यार करने वाले एक - दूसरे की कमियों पर ताने नहीं कसते, बल्कि जो अच्छाइयाँ है उसकी प्रशंसा करते है और अपनी खुद की कमियों को दूर करने का प्रयास करते है। उनको एक - दूसरो में कमिया नहीं दिखती। और शादी - शूदा लोगो में एक-दूसरे में कमियों के सिवाह कुछ और नहीं दीखता। इसलिए वहा प्यार का फूल खिलना मुश्किल हो जाता है।
शादी के कई साल हो जाते है - बच्चे भी हो जाते है - लेकिन एक-दूसरे में परफेक्शन ढूढ़ने वालो के खूद के जीवन में अधूरापन के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता। इसीलिए पति और पत्नी के जीवन में भटकाव भी देखा जा सकता है। शादी के अतिरिक्त कोई अन्य सम्बन्ध होना इस अधूरेपन का नतीजा होता है।
भले ही प्यार अधूरा होता है, लेकिन उसमें जिंदगी पूर्ण होती है, उसमे जान होता है। शादी भले ही मुक्कमल चीज़ हो, लेकिन उसमें जिंदगी अक्सर अधूरी रहती है।
शादी - शूदा लोगो की प्रेम कहानी पाना मुश्किल है। क्या आपने कही देखा या सुना है शादी-शूदा लोगो की प्रेम कहानी ? जहा प्रेम न हो वहा प्रेम कहानी कैसे बन सकती है। शादी के बाद इंसान की खुद के अस्तित्व के साथ-साथ उसकीं सारी कहानिया ख़त्म हो जाती है। जिनलोगो की प्रेम कहानी है - उनकी कभी शादी नहीं हो पायी-
जैसे -
लैला मजनू, हीर राँझा, जूलियट फरियाद, राधा कृष्ण इत्यादि। श्रीकृष्ण की आठ पत्निया थी - उनमे से एक के साथ भी उनकी प्रेम कहानी नहीं है। उनकी प्रेम कहानी राधा के साथ है, जो कभी उनकी पत्नी न बन सकी।
सीता और राम की प्रेम कहानी लिखने का प्रयास किया गया था - लेकिन क्या हुआ - वह एक दूसरे सत्यता की परीक्षा लेने में और एक -दूसरे को अपनी सत्यता सिद्ध करने में लगे रहे। और अंत मे, दोनों ने इस तनाव से आत्महत्या कर लिए। शादी के इस तनाव और परीक्षा से तंग आकर सीताजी ने अपने-आप को ही जमीन में गाड़ लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। तत्पश्चात, श्रीराम जी ने भी सरयू नदी में डूबकर अपने प्राण त्याग दिए। अधिकतर लोगो की शादी की कहानी इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं।
अगर आप प्यार में है तो शादी के सम्भावना है, लेकिन शादी के बाद प्यार की संभावना हो, ऐसा कोई जरूरी नहीं।
परन्तु यह भी सत्य है की - प्रेम का फूल किसी भी रिश्ता में खिलाया है, बशर्ते हम इसके अधूरेपन को स्वीकार करे की कोई भी न परफेक्ट है और नहीं हो सकता है। एक दूसरे के कमियों को स्वीकार कर साथ में ख़ुशी ख़ुशी रहना ही प्रेम है। जिस रिश्ते में प्रेम नहीं होता, उस रिश्ते के आदमी एक-दूसरे के साथ कभी भी खुश नहीं रह सकते। फिर वह रिश्ता एक समझौता होता है, एक मजबूरी होती है, एक दासता होती है, और कुछ भी नहीं। कहने के लिए रिश्ता तो होता है, परन्तु ऐसे रिश्तो में जान नहीं होता।
स्वामी विवेकानंद कहते है -
"जीवन में ज्यादा रिश्ता होना जरूरी नहीं, पर जो रिश्ते है, उसमे जीवन रहना जरूरी है। "
लेकिन प्यार में ऐसा नहीं होता - प्यार महज हो जाता है। प्यार जातीय पसंद होता है।
शादी एक मुक्कमल चीज़ होती है और प्यार अधूरा होता है। मुक्कमल और अधूरा एक दूसरे का विरोधाभास होता है। एक -दूसरे के साथ नहीं रह सकते। पूर्णता आते ही अधूरापन समाप्त हो जाता है। शादी के बाद पति और पत्नी एक दूसरे में परफेक्शन ढूढ़ने में लग जाते है । एक- दूसरे को सुधारने में लग जाते है। एक-दूसरे के कमियों को उजागर करने में लग जाते है। शादी हो गयी है मतलब की एक दूसरे में कोई कमिया नहीं होनी चाहिए। यही सुधरने और सुधारने में पूरी जिंदगी समाप्त हो जाती है।
प्यार पफेक्शन का मांग नहीं करता, बल्कि जो भी है उसको स्वीकार करता है। वह इसकी मांग कर ही नहीं सकता - क्योकि प्यार अपने-आप में आधा और अधूरा होता है। गौर से देखे -
प्यार में प आधा है,
इश्क में श आधा है,
मुहब्बत में ब आधा है,
प्रेम में र आधा है और
प्रेम के प्रतिक माने जाने वाले श्रीकृष्ण में ष अधूरा है-
इसीलिए तो मंदिरो में श्रीकृष्ण के साथ सत्यभामा नहीं, राधा है।
जिसको पता है कि मै खूद में अधूरा हूँ, तो वह दुसरो में परफेक्शन नहीं ढूंढ़ता, बल्कि उसमे विलय होकर अपने अधूरेपन को दूर करने का प्रयास करता है।
प्यार करने वाले एक - दूसरे की कमियों पर ताने नहीं कसते, बल्कि जो अच्छाइयाँ है उसकी प्रशंसा करते है और अपनी खुद की कमियों को दूर करने का प्रयास करते है। उनको एक - दूसरो में कमिया नहीं दिखती। और शादी - शूदा लोगो में एक-दूसरे में कमियों के सिवाह कुछ और नहीं दीखता। इसलिए वहा प्यार का फूल खिलना मुश्किल हो जाता है।
शादी के कई साल हो जाते है - बच्चे भी हो जाते है - लेकिन एक-दूसरे में परफेक्शन ढूढ़ने वालो के खूद के जीवन में अधूरापन के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता। इसीलिए पति और पत्नी के जीवन में भटकाव भी देखा जा सकता है। शादी के अतिरिक्त कोई अन्य सम्बन्ध होना इस अधूरेपन का नतीजा होता है।
भले ही प्यार अधूरा होता है, लेकिन उसमें जिंदगी पूर्ण होती है, उसमे जान होता है। शादी भले ही मुक्कमल चीज़ हो, लेकिन उसमें जिंदगी अक्सर अधूरी रहती है।
शादी - शूदा लोगो की प्रेम कहानी पाना मुश्किल है। क्या आपने कही देखा या सुना है शादी-शूदा लोगो की प्रेम कहानी ? जहा प्रेम न हो वहा प्रेम कहानी कैसे बन सकती है। शादी के बाद इंसान की खुद के अस्तित्व के साथ-साथ उसकीं सारी कहानिया ख़त्म हो जाती है। जिनलोगो की प्रेम कहानी है - उनकी कभी शादी नहीं हो पायी-
जैसे -
लैला मजनू, हीर राँझा, जूलियट फरियाद, राधा कृष्ण इत्यादि। श्रीकृष्ण की आठ पत्निया थी - उनमे से एक के साथ भी उनकी प्रेम कहानी नहीं है। उनकी प्रेम कहानी राधा के साथ है, जो कभी उनकी पत्नी न बन सकी।
सीता और राम की प्रेम कहानी लिखने का प्रयास किया गया था - लेकिन क्या हुआ - वह एक दूसरे सत्यता की परीक्षा लेने में और एक -दूसरे को अपनी सत्यता सिद्ध करने में लगे रहे। और अंत मे, दोनों ने इस तनाव से आत्महत्या कर लिए। शादी के इस तनाव और परीक्षा से तंग आकर सीताजी ने अपने-आप को ही जमीन में गाड़ लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। तत्पश्चात, श्रीराम जी ने भी सरयू नदी में डूबकर अपने प्राण त्याग दिए। अधिकतर लोगो की शादी की कहानी इससे ज़्यादा कुछ भी नहीं।
अगर आप प्यार में है तो शादी के सम्भावना है, लेकिन शादी के बाद प्यार की संभावना हो, ऐसा कोई जरूरी नहीं।
परन्तु यह भी सत्य है की - प्रेम का फूल किसी भी रिश्ता में खिलाया है, बशर्ते हम इसके अधूरेपन को स्वीकार करे की कोई भी न परफेक्ट है और नहीं हो सकता है। एक दूसरे के कमियों को स्वीकार कर साथ में ख़ुशी ख़ुशी रहना ही प्रेम है। जिस रिश्ते में प्रेम नहीं होता, उस रिश्ते के आदमी एक-दूसरे के साथ कभी भी खुश नहीं रह सकते। फिर वह रिश्ता एक समझौता होता है, एक मजबूरी होती है, एक दासता होती है, और कुछ भी नहीं। कहने के लिए रिश्ता तो होता है, परन्तु ऐसे रिश्तो में जान नहीं होता।
स्वामी विवेकानंद कहते है -
"जीवन में ज्यादा रिश्ता होना जरूरी नहीं, पर जो रिश्ते है, उसमे जीवन रहना जरूरी है। "