Saturday 6 August 2016

भगवत गीता केवल अर्जुन को ही क्यों सुनाई दिया ?


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महाभारत युद्ध में जान और माल का भारी नुकसान हुआ । इसे विश्व का सबसे बड़ा और पहला विश्व युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में विश्व के अनेक क्षेत्र के योद्धा शामिल हुए थे। परंतु इस युद्ध से सबसे कीमती और मानवता को मार्गदर्शन हेतू  एक ग्रन्थ प्राप्त हुआ, वह है भगवत गीता । यह विश्व में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाला ग्रन्थ भी है । भगवत गीता किसी विशेष धर्म के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए है। इसमें १८ अध्याय और ७०० श्लोक है ।  इसे आत्मा का विज्ञान कहा जाना ज्यादा उचित होगा।  
अर्जुन ही ऐसे पहले व्यक्ति नहीं है, जिसे गीता का साक्षात् ज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवत  गीता का ज्ञान सृष्टि के उत्पति के समय से है । सबसे पहले इसका साक्षात् ज्ञान सूर्यदेव विवस्वान हो हुआ था। उन्होंने इसे अपने पूत्र मनू को दिया, मनू ने अपने पूत्र ईक्षवु को दिया, इस तरह से यह ज्ञान चलता रहा । लेकिन धीरे- धीरे यह ज्ञान विलुप्त हो गया। इस ज्ञान को पुनः मूल रूप में प्रस्तुत करने के लिए श्री कृष्णा ने अर्जून का चयन किया । 

गीता का ज्ञान महाभारत युध्द के पहले दिन पांडवो और कौरवो के सेना के मध्य में श्री कृष्णा द्यारा अर्जून को दिया गया था । युद्ध  भूमि में सबके सामने गीता का ज्ञान दिया जा रहा है, लेकिन अर्जून के सिवाय कोई सून या श्री कृष्णा का विराट रूप देख नहीं पाया । आखिर क्यों---? 

भगवत गीता (अघ्याय ४;३) में श्रीकृष्णा कहते है -- हे अर्जून! आप मेरे प्रिय मित्र और भक्त होने के साथ-साथ आप ज्ञान प्राप्त करने के इच्क्षुक भी हो, आप यह ज्ञान प्राप्त करने का उचित पात्र है , इसीलिए यह ज्ञान मैं आपको देना चाहता हू । 

यहाँ पर अर्जून एक पवित्र आत्मा के प्रतिक है, जो की विपरीत प्रस्थिति में भी सच्चे ज्ञान के तलाश में है, हर घटित होने वाली घटना का उद्देश्य और कारण जानना चाहते है। कोई भी कार्य स्वार्थ, लालच या किसी को नुकसान पहुँचाने के मकसद से नहीं करना चाहते है। कोई भी क्रिया करने से पहले उचित और अनुचित का भेद जान जाना चाहते है। उनका ज्ञान जानने का प्रयास अहम् रहित और ईश्वर के प्रति समर्पित है। 

दूसरी तरफ युद्ध क्षेत्र में खड़ी सेना सामान्य जनसमुदाय को दर्शाता है, जिन्हें कोई भी क्रिया करने से पहले उचित या अनुचित का जानना जरूरी नहीं होता । उन्हें तात्कालिक लाभ ज्यादा लुभाता है। उनकी आत्मा घमण्ड और लालच के मजबूत दीवार में घिरा रहता है। जो व्यक्ति लालच और घमण्ड का शिकार है उसको गीता का ज्ञान, जो की आत्मा का विज्ञानं है, प्राप्त नहीं हो सकता, चाहे क्यों न स्वयं ईश्वर ही इसे प्रदान कर रहे है । सिवाय अर्जुन के उस युद्ध क्षेत्र में सारे लोग लालच या घमण्ड या बदले के भावना से एक दूसरे के समक्ष खड़े थे । यही कारण था कि गीता का ज्ञान सबके सामने प्रस्तूत होने के वावजूद भी अर्जून के सिवाय किसी को सुनाई नहीं दिया । 

सामान्तया इंसान वही देख या सून सकता है, जो वह सुनना या देखना चाहता है। अर्जून के सिवाय गीता का ज्ञान संजय और धृष्टराष्ट्र को प्राप्त हुआ था । यह दर्शाता है कि ज्ञान तीन तरीको से प्राप्त किया जा सकता है :-
१. अर्जून विधि -- प्रत्यक्ष ज्ञान 
२. संजय विधि -- पढ़ने या देखने से 
३. धृष्टराष्ट्र विधि -- श्रवण करने से, यानि सुनने से 




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