Wednesday 28 September 2016

कान पकड़ के उठक बैठक - आखिर क्या मतलब है इसका?

आज फिर तुम अपना होम वर्क करके नहीं आये, आज मैं कुछ नहीं सुनने वाला, चलो कान पकड़कर उठक बैठक करो, और कसम खाओ कि आज से होमवर्क पूरा करके लाओगे। याद आया-- स्कूल के मास्टर जी की बात। कम से कम एक बार, सबको कान पकड़कर उठक बैठक, या कान पकड़कर कसम खाने का या आज से मैं यह नहीं करूँगा, कान पकड़ता हूँ - ऐसा मौका तो जरूर आया होगा।

क्या कभी आपने सोचा है कि - कान पकड़कर ही उठक बैठक या कान पकड़ता हूँ, ऐसा नहीं करूँगा, सॉरी, ही क्यों कहा जाता है? आखिर कान पर इतना जोर क्यों दिया जाता है? क्या मतलब है इसका?

हम मनुष्य के पास दो कान और एक मुँह होता है । मुँह से भोजन करना, चबाना, पीना, बोलना, हँसना आदि क्रियाएं की जाती है। मुँह एक और काम अनेक। कान दो है, लेकिन काम सिर्फ एक - श्रवण करना। इसका मतलब जितना हम बोलते है, उसका कम से कम दुगुना हमको सुनना चाहिए। दो कान और एक मुह प्रकृति की बनावट है। प्रकृति का हर एक बनावट महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति चाहती है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा श्रवण करे।

श्रवण इतना महत्पूर्ण है कि वेद को भी श्रुति बोला जाता है। वेद का ज्ञान अंतरात्मा को सुनने से ही प्राप्त हुई है। जबतक आदमी सुनेगा नहीं, तबतक सीखेगा या समझेगा नहीं। बिना सही से सुने किसी बात पे विचार नहीं हो सकता, तबतक विचार नहीं होगा, नया खोज-बिन नहीं हो सकता, और बिना नया खोज-बिन के विकास संभव नहीं । मनुष्य अज्ञानी के अज्ञानी ही बना रह जायेगा, ज्ञान की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। जबतक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, चाहे कोई भी बिषय हो, मनुष्य को आगे बढ़ने का आत्मविश्वास कदापि नहीं आ सकता।

जिस परिवार या समाज में बोलने वाले ज़्यादा होते है, और सुनने वाले कम, उस परिवार या समाज में कभी शांति नहीं रहती , कलह ज़्यादा होता है। जबतक आप एक-दूसरे को सुनेगे नहीं, तबतक एक -दूसरे को समझ नहीं सकते, जबतक समझेगे नहीं तबतक कोई भी समस्याओ का हल नहीं निकल सकता।

श्रवण इतना महत्वपूर्ण है कि भगवत गीता के पहले पाठ में सिर्फ अर्जून बोल रहे है और भगवान श्री कृष्ण सुन रहे है । अर्जून की पूरी दुबिधा पूरी तरह से सुनने और समझने के बाद, श्री कृष्ण ने भगवद गीता का ज्ञान अर्जून को दिये । अर्जून ने भी इसे पूरी तरह से सूने और समझें, तभी तो वह इस ज्ञान रूपी तलवार से अपने सारी दुबिधा के बंधनो को काट डाले, और वही किये जो उस वक्त उचित था।

जब इंसान से बार बार भूल हो रही है, या एक ही गलती को वह बार बार दुहरा रहा है, इसका मतलब यह है कि आदमी काम की बाते कम सुन रहा है, और इधर-उधर की बातें ज़्यादा बोल रहा है। ऐसे में इंसान से गलतियां तो होगी ही।  

जब गलतियां होगी तो मनुष्य अपने बचाव के लिये झूठ का सहारा लेगा। एक झूठ दूसरे झूठ को आमंत्रित करता है।  इस तरह मनुष्य अपने ही बुने हुए झूठ के जाल में फस कर ज़िन्दगी के सारे सुनहरे संभावनों को नष्ट कर देता है। इसके बाद वह अपनी व्यथा सारी दुनिया को सुनाने निकलता है। उसकी तकलीफ और ज़्यादा बढ़ जाती है जब कोई उसको सुनने वाला नहीं मिलता।

शिकायत करना व्यर्थ है - तुमने कभी किसी का सुना है कि तुम्हारा कोई सुनेगा। सुनना बहुत कठिन काम है, और जिसको यह कठिन काम आ गया, समझो वह अपनी जीवन को समझ गया।

इसलिए कोई गलती हो तो हम कान पकड़ते है, ताकि, इस गलती के इशारे को सही से सूने और समझें। सही से समझ जाने पर एक ही गलती की पुनरावर्ती बार बार नहीं होती। 

कान पकड़कर उठक बैठक करना या कान पकड़कर कसम खाना मतलब श्रवण शक्ति पर जोर देना। इसके साथ ही, कान की नाज़ुक नसे मस्तिष्क के तन्तुयो से जुडी होती  है। कान को छूने से, मस्तिष्क की तंतुए सक्रीय हो जाती है। इससे फायदा यह होता है कि  श्रवण शक्ति में इज़ाफ़ा होने के साथ-साथ मस्तिष्क की ग्राह शक्ति भी बढ़ जाती है।





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