मन बहुत चंचल और धूर्त होता है। मन अच्छे से अच्छे इंसान को भी दुःख में धकेल सकता है। मन खाली जगह को ढूढ़ते रहता है। और जहा उसको खाली जगह मिलता है, उसी को अपना जगह बना कर बैठ जाता है, और अपने खालीपन और दुःख का ढिढोरा दुनिया में पीटने लगता है। आपके सारे दांत सही है, तो उसपर अपना ध्यान कभी नहीं जाता। यदि एक दांत टूट जाये तो, अपनी जिह्वा बार-बार उसी से टकराती रहती है। मन भी वैसा ही है, जो है उसकी कदर नहीं करता और जो नहीं है, चाहें उसकी आवश्यकता ज़िन्दगी हो या न हो, उसी को ढूढ़ते रहता है, और इंसान को परेशान करते रहता है।
हमारी ज़िन्दगी ऑक्सीजन पर निर्भर है, लेकिन हम बहुत कम ही उसपर ध्यान देते है। जब हमारी साँसों की उल्टी गिनती शुरू होती है, तब हमारा ध्यान ऑक्सीजन के महत्व पर जाता है। हम कितनी बार यह सोच-समझकर खुश होते है, जो हमारी अति-आवश्यक चीज़ है, वह प्राकृतिक है, और हमे मुफ्त में और पर्याप्त मात्रा में है। जैसे हवा,पानी,सूर्य की रौशनी आदि। यदि यह प्रदूषित हो रही है तो हमारे वजह से हो रही है। मन तो सिर्फ सांसारिक चीजों को ही पूरा करने को कहता है। इसी मन की बात और जिद्द को पूरा करने के लिए हम प्राकृतिक और आध्यात्मिक चीजों को प्रदूषित या अनदेखा कर देते है, जो की शाश्वत है।
मन की हर बात और जिद्द को मानने वाला इंसान, कभी भी सुखी या चैन से नहीं रहा है। मन की तो यह चाल ही है की मनुष्य को मोह-माया से बांध कर रखना और सत्य से दूर रखना। आपने बच्चों को देखा होगा, एक खिलौना की जिद्द करते है, यहा तक की खाना-पीना भी छोड़ देते है, बस उनकी जिद्द पूरी होनी चाहिए। खिलौना दे दिया आपने, कुछ दिन उस खिलौने से खेलेंगे, और फेक देंगे, चाहे कितनी ही कीमती खिलौना हो। फिर दूसरे खिलौने की जिद्द शुरू कर देते है। ठीक हमारा मन वैसा ही है। बिना सोचे-समझे बेकार की चीजों को पकड़ कर बैठा रहता है।
चाहे कोई सिकंदर बन जाए और सारी दुनिया को जीत ले, लेकिन यदि वह अपने मन को नहीं जीत पाया तो भिखारी का भिखारी ही रहता है। मन पर विजय प्राप्त करने वाले इंसान के लिए पृथ्वी ही स्वर्ग है, और वह खूद का सिंकंदर। मन और मस्तिष्क पर काबू रखने वाला इंसान अपने भाग्य को भी काबू कर सकता है।
No comments:
Post a Comment