Wednesday, 20 March 2013

धर्मं तो एक इशारा है..


हमारे इस संसार में अनेक प्रकार के धर्म है| प्रत्येक धर्म अपने को महान समझता है| इतिहास गवाह है, कि इस विश्व में सबसे ज़्यादा युद्ध और खून खराबा धर्म के नाम पर ही हुआ है| कोई धर्म अपने-आप को पूर्ण नहीं कह सकता।  हर धर्म के लोगो में से कुछ लोगो ने ही अध्यात्म को प्राप्त हुए है।  यदि कोई भी धर्म अपने-आप में पूर्ण होता तो  उस धर्मं के सारे लोग अध्यात्म या दैवित्य को प्राप्त होते, और सबको मौक्ष मिल गया होता। लेकिन  अब तक ऐसा नहीं हुआ है, तो हम कैसे यह दावा कर सकते है, कि जो धर्म हमारा है या जिस धर्म का  हम अनुसरण कर रहे है, वही उतम है, और बाकी सब बेकार। कोई भी धर्म पूर्ण नहीं है, सभी धर्म एक-दुसरे के पूरक है।

धर्म कोई मंजिल नहीं है, यह तो सिर्फ रास्ता है, यह तो सिर्फ एक इशारा है, उस अनंत मंजिल तक पहुचाने का। यदि हम मंजिल को भूल कर, सिर्फ इशारे को या सिर्फ रास्ते को पकड़ कर अकड़ रहे है, तो हम एक बुद्धिमान प्राणी के  श्रेणी में नहीं गिने जा सकते है। हर धर्म उस मंजिल की तरफ इशारा कर रही है, उस परमात्मा तक पहुचने की मार्ग मात्र बता रही है। उस मंजिल तक पहुचने के अन्नत मार्ग है, उस परमात्मा को समझाने के अनेक इशारे है। जो इशारा सही समझ में आ जाए वही इशारा उतम है, जो मार्ग मुझे  बिना भटकाए मेरी मंजिल तक पंहुचा दे, वही मार्ग मेरे लिए अच्छा है। कोई दूसरा रास्ता पकड़कर भी उस मंजिल पे पंहुचा है, इसका मतलब यह नहीं की मेरा रास्ता सही था, और दुसरे का ग़लत।  रास्ते का चुनाव इस आधार पर करते है, की हम यात्रा कहा से शूरु कर रहे है।

मंजिल पर पहुचने के बाद, रास्ते का कोई ज़िक्र नहीं करता। सारे धर्मो का मकसद एक ही है, चुनाव हमें करना है कि  कौन-सा रास्ता हमारे लिए उतम है। बस यही है धर्म का मतलब कि  आप सही सलामत अपने आखरी मंजिल पर पहुच जाए। कोई भी रास्ता चुने जो मंजिल को जाती है, और चलते चले जाए और कही न उलझे, तो मंजिल मिल जाएगी। परमात्मा धर्मो के जाल में उलझने से कदापि नहीं मिलता। 


           

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