जब हम स्वस्थ रहते है तब हमारे ज़हन में यह प्रश्न नहीं आता कि मै स्वस्थ क्यों हू। लेकिन जब हम अस्वस्थ रहते है, तब हमारे मन में तरह-तरह के प्रश्न उठते है, कि मै अस्वस्थ क्यों हू, या सारी तकलीफे मेरे साथ ही क्यों? सवाल तभी उत्पन्न होता है, जब कुछ अस्वाभाविक होता है। जैसे सूर्य पूरब में उगता है, और पश्चिम में डूबता है, तो कोई प्रश्न नहीं करता कि ऐसा क्यों हो रहा है! क्योकि यह स्वाभविक है। अचानक रात को सूर्य निकल आये या दोपहर को अचानक सूर्य गायब हो जाये तो प्रश्न बनता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसी तरह स्वस्थ और आनंदित रहना मनुष्य का स्वाभाविक गुण होता है। जब कुछ अस्वाभाविक होता है तो प्रश्न उठने लगते है।
स्वास्थ्य का अर्थ होता है, 'स्व' में 'स्थित'। वास्तविक प्रश्न होना चाहिए कि क्या हम स्वं में स्थित है? क्या हम स्वाभाविक और प्राकृतिक है? प्रश्न यह नहीं होना चाहिए कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है?
मनुष्य के स्वास्थ्य को तीन भागो में बाटा जा सकता है:- १. शारीरिक स्वास्थ्य २. मानसिक स्वास्थ्य ३. आध्यात्मिक स्वास्थ्य। जब तब मनुष्य तीनो प्रकार का स्वास्थ्य लाभ प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक उसको पूर्ण रूप से ख़ुशी और सूख की प्राप्ति नहीं हो सकती। शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए, यह ध्यान देना ज़रूरी है, कि हम शरीर को क्या पौष्टिकता दे रहे है।हमे शरीर को भोजन देना है, जिह्वा को नहीं। शरीर एक यन्त्र है,इससे काम लेते रहना चाहिए नहीं तो जंग लग कर खराब यानि अस्वस्थ हो जाता है। शरीर से जितना ज्यादा काम लिया जाय,उतना ही स्वस्थ रहता है।मानसिक स्वास्थ्य के लिए सकरात्मक सोच का होना बहुत ज़रूरी है। इर्ष्या,द्वेष,घृणा,भेदभाव,लोभ,आसक्ति इत्यादि मानसिक कीटाणु है,जो कि मनुष्य के मष्तिष्क और सोच को विकृत कर देते है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए, इन कीटाणुओं को नष्ट करना ही एक मात्र उपाय है। सही सोच और वास्तविक ज्ञान के माध्यम से इनपर काबू पाया जा सकता है। आध्यामिक माने "आत्म का अध्यन"। अध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए अपने-आप को जानना बहुत ज़रूरी है। अत्म-ज्ञान तभी हो सकता है, जब खुद का अहम मिट जाता है। खुद के मिटते ही ख़ुदा दिखने लगता है|
जब यह तीनो स्वास्थ्य लाभ मनुष्य को मिल जाता है, तो वह अपने-आप में स्थित पाता है, वही अपने-आप को पूर्ण रूप से स्वास्थ्य पाता है। ऐसे स्वस्थ इंसान के लिए तो यह धरती ही स्वर्ग जैसा लगता है।
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