Friday 7 December 2012

आलोचक भी बड़े काम के

बामुश्किल से कोई ऐसा इंसान होगा जो किसी की आलोचना न की हो या उसका कभी आलोचना न हुआ हो। कभी-कभी आलोचना करने या सुनने में बड़ा आनंद आता है। इंसान को अपनी तारीफ़ और दूसरो की आलोचना सुनना प्रिय लगता  है। दूसरो की आलोचना करना अच्छी बात नहीं है। पर हमारे आलोचक हमारे लिए फायदेमंद साबित होते है। जब कोई हमारी निंदा या आलोचना करता है, और हमे यह ज्ञात  होता है तो हम आलोचक पर क्रोधित हो जाते है। उसकी आलोचना का जबाब देने की तरकीबे खोजने लगते है। हमे यह लगता है कि, फलाँ व्यक्ति मुझे नीचा दिखाने  की कोशिश कर रहा है। यह नहीं सोचते कि शायद हमारे अंदर ही कुछ खामियाँ  हो, जो हमें दिखाई नहीं दे रहा है। इस आलोचना के माध्यम से , हमें हमारी कमियों का पता लगता है,जिसके बारे में  शायद कभी विचार न  किया हो कि
 इसके    सुधरने पर हमारे  व्यक्तित्व में निखर हो।  एक बात तो सदा सत्य है कि कोई भी इंसान पूर्ण नहीं है। चाहे कोई इंसान कितना भी महान क्यों न हो। खामियाँ तो हर इंसान में है। अपनी खामियों को दूर करके ही इंसान, अपनी पहचान दूसरो से अलग बनाता है। अपनी अज्ञानता को पहचानना ही ज्ञान की तरफ पहली कदम है। आत्म-निरीक्षण करने के वावजूद भी, हम अपने सारे खामियों को नहीं पहचान सकते। जो काम हम नहीं कर सकते, वह काम हमारे आलोचक बड़े आसानी से हमारे लिए कर देते है। जब तक हमें हमारे खामियाँ नहीं मालूम होगा, तब तक हम उसके सुधार के बारे में कैसे विचार कर सकते है।

किसी भी चलचित्र में खलनायक की बड़ी अहम् भूमिका होती है। खलनायक ही नायक को निखारता है। इसी तरह आलोचक भी हमारे व्यक्तिव के निखार में अहम् भूमिका निभाते है। वे साबुन और पानी की तरह होते है, जो हमारे कमियों को दूर करने में मदद करते है। कपडे साफ़ करते वक़्त हम कपडे में सफेदी या चमक नहीं डालते, बल्कि हम कपडे से गन्दगी को निकल देते है तो सफेदी अपने आप आ जाती है। सफेदी तो कपडे में पहले से ही मौज़ूद था, गन्दगी तो उपरी आवरण है। हमारे अंदर भी  बेशुमार गुण और ज्ञान का भंडार होता है, लेकिन वह हमारे खामियों के पीछे छुपा रहता है। जैसे-जैसे  हम अपनी  खामियों को दूर करते है, वैसे-वैसे हम अपने व्यक्तित्व में निखार  पाते है। आलोचना वह कांटा है, जो हमारे अंदर छुपे हुए अवगुणों  को निकालने में सहायक होता है, जिससे हमारे हूनर में चमक आती है।

आलोचक को हमे धन्यबाद देना चाहिए , न कि उनपर क्रोधित  होना चाहिए। कोई आपकी आलोचना इसलिए कर रहा है, क्योकि आपके अंदर कुछ बात  है। कोई किसी के बारे में  यु ही बातें नहीं करता,  बात करने के लिए आपमें कुछ  बात होनी चाहिए। लोग  फल लगे पेड़ पर ही पत्थर मारते है। जो लोग आलोचना और आलोचक को साकारात्मक लेते है, वे अपने क्षेत्र में बहुत प्रगति करते है, और जो इसको नाकारात्मक लेते है , और बदले की आग में जलते है, वे अपने विकास का पथ स्वयं ही अवरुद्ध कर लेते है। हम हर किसी की जुबान तो बंद  नहीं कर सकते, पर हाँ! -- हम इसे कैसे लेते है, यह हम स्वयं तय कर सकते  है।

 

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